उपग्रहों के प्रक्षेपण का सिद्धांत क्या है



क्या आपने कई बार उपग्रहों के प्रक्षेपण के सिद्धांत को समझने की कोशिश की है लेकिन कांसेप्ट क्लियर नहीं हो पा रहा है कुछ कंफ्यूजन बना रहता है 
दिमाग में कुछ ऐसे प्रश्न घूम  रहे हैं जिनके   उत्तर पाने  के लिए आप  इंटरनेट खंगाल रहे हैं लेकिन कन्फ्यूजन बरकरार है
 तो चलिए सेटेलाइट से संबंधित उन सभी कंफ्यूजन को दूर करेंगे जिसे आप अब तक समझ नहीं पाया हमें उम्मीद है कि इस पोस्ट को  अंत तक पढ़ने के बाद आपके मन में कोई डाउट नहीं रह जाएगा

Principle of Launching Satellites  in hindi


अगर आपको उपग्रहों के प्रक्षेपण के सिद्धांत का  कांसेप्ट क्लियर है तब भी आप इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े  क्योंकि इसमें कुछ ऐसी रोचक जानकारी दी गई है शायद आप उसे नहीं जानते होंगे
तो चलिए  बिना देर किए शुरू करते हैं

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उपग्रहों के प्रक्षेपण का सिद्धांत



कृत्रिम उपग्रह के बारे में हमारे मन में सबसे पहले और सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा होता है कि उपग्रह लगातार पृथ्वी का चक्कर लगाता रहता हैआखिर पृथ्वी पर गिरता क्यों नहीं है? इस प्रश्न के जवाब के लिए हमें सेटेलाइट के लांचिंग सिद्धांत को समझना पड़ेगा ---

Principle of Launching Satellites

जटिल से जटिल तथ्य को चित्र के माध्यम से समझना सरल होता है इसलिए निम्न चित्र पर विचार कीजिए जिसमें पृथ्वी की सतह पर स्थित काफी ऊंचा टावर है
Principle of Launching Satellites



यदि टावर के ऊपर top से एक पत्थर को किसी वेग  से फेका  जाए तब यह पत्थर एक परवलय कार पथ  में चलकर पृथ्वी पर बिंदु A पर गिर जाता है

यदि पत्थर को कुछ अधिक वेग से क्षैतिज दिशा में फेंका जाए तब यह पृथ्वी से बिंदु B पर  टकराता है

यदि वेग का मान निरंतर बढ़ाया जाए तब या पृथ्वी पर टावर से सदा कुछ आगे की ओर   गिरता है एक अवस्था ऐसी आती है पत्थर को एक निश्चित वेग  से फेंकने पर व गुरुत्व के प्रभाव में मुक्त रूप से गिरने लगेगा अर्थात पृथ्वी पर गिरने का लगातार प्रयत्न करेगा परंतु पृथ्वी को कभी स्पर्श नहीं कर पाएगा उपग्रहों के प्रक्षेपण का सिद्धांत यही है इसका परिणाम यह होगा कि पत्थर पृथ्वी के चारों तरफ वृत्ताकार पथ में कक्षीय वेग से गति करता रहेगा

कक्षीय वेग किसे कहते है


उपग्रह को जिस वेग से फेंका जाता है उसे उपग्रह का कक्षीय वेग (orbital velocity) कहते हैं

अब आप सोच रहे होंगे कि उपग्रह को किस वेग से फेंके की वह पृथ्वी का लगातार चक्कर लगाता रहे

दरअसल उपग्रह के प्रक्षेपण की गति इस बात पर निर्भर करती है की उपग्रह को पृथ्वी ताल से कितनी उचाई से प्रक्षेपित करना है

इसके लिए एक फार्मूला है जिसकी सहायता से आप पृथ्वी का परिक्रमण करने के लिए आवश्यक वेग का पता लगा सकते है
orbital velocity
जहा

v = कक्षीय वेग
R = पृथ्वी की त्रिज्या (64000000मीटर)
g = पृथ्वी का गुरुत्वी त्वरण



साथ ही साथ हम इस फार्मूले से यह भी जानते चले कि पृथ्वी के बिल्कुल  समीप उपग्रह को परिक्रमा करने के लिए कक्षीय वेग कितना होना चाहिए 
R= 6400000 मीटर

g = 9.81 m/s2

h= 0 (क्योंकि उपग्रह पृथ्वी के समीप है)

=7.98 किलो मीटर/ सेकेण्ड 


यानी पृथ्वी के समीप परिक्रमा करने के लिए उपग्रह का वेग 7.98 किलोमीटर प्रति सेकंड होना चाहिए

उपग्रह का परिक्रमण काल


उपग्रह द्वारा, ग्रह का एक चक्कर पूरा करने में जितना समय लगता है उसे उपग्रह का परिक्रमण काल कहते हैं

परिक्रमण काल भी ऊंचाई पर निर्भर करता है अर्थात जितना अधिक ऊंचाई पर उपग्रह रहेगा उतना ही उसका परिक्रमण काल ज्यादा होगा उदाहरण के लिए चंद्रमा पृथ्वी से 380000 किलोमीटर दूर है पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करने में 27 दिन का समय लेता है जबकि पृथ्वी के समीप एक कृत्रिम उपग्रह 1 दिन में 10 से 20 चक्कर लगा लेता है


तुल्यकाली उपग्रह किसे कहते हैं

 Geostationary satellite in Hindi


जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पृथ्वी अपने अक्ष के परित: एंटीक्लाकवाइज दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और एक चक्कर  पूरा करने में 24 घंटे का समय लेती है

यदि किसी उपग्रह का परिक्रमण काल भी 24 घंटे का हो तो उपग्रह पृथ्वी के ऊपर पृथ्वी के सापेक्ष एक ही जगह रहेगा तथा स्थिर प्रतीत होगा





इस उपग्रह को ही तुल्यकाली उपग्रह कहते हैं

अब आप सोच रहे होंगे कि इसी उपग्रह को किस ऊंचाई व किस वेग से फेंके की वह तुल्यकाली उपग्रह हो जाए अर्थात उसका परिक्रमण काल 24 घंटे का हो

जवाब यह है कि 36000 किलोमीटर की ऊंचाई से पश्चिम से पूर्व की ओर एंटीक्लाकवाइज दिशा में 3.08 किलोमीटर प्रति सेकंड की वेग से छोड़ने पर उपग्रह का परिक्रमण काल 24 घंटे का होगा जिसे हम तुल्यकाली उपग्रह कहते हैं
तुल्यकाली ग्रह के बारे में सबकुछ जानने के बाद अब हमारे में मन में सवाल उठता है कि इस उपग्रह का उपयोग कहा किया जाता है ?
इस प्रकार के उपग्रह का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन में किया जाता है

आपने नोटिस किया होगा कि सभी टीवी Antenna एक ही दिशा में होते है ऐसा इस लिए होता है कि उसी दिशा में स्थित तुल्यकाली उपग्रह के द्वारा सिंगनल मिलता रहे
जैसा की आप समझ ही चुके है की तुल्यकाली उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर होता है ,यानि जितना पृथ्वी के साथ टीवी ऐन्टेना घूमता है उतना ही उपग्रह भी घूम जाता है फलस्वरूप ऐन्टेना को उपग्रह से लगातार सिंगनल मिलता रहता है
  
 


विश्व का पहला कृत्रिम उपग्रह कब छोड़ा गया था

पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1, सोवियत संघ द्वारा 4 अक्टूबर 1957, को प्रक्षेपित किया गया था


भारत का पहला कृत्रिम उपग्रह कौन सा था

आर्यभट्ट भारत का पहला उपग्रह है, जिसे इसी नाम के महान भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर नामित किया गया है। यह सोवियत संघ द्वारा 19 अप्रैल 1975 को स्पेस एजेंसी कॉसमॉस के प्रक्षेपण वाहन द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।

नमस्ते  दोस्तों! आपने अपना किमती वक्त इस पोस्ट को पढ़ने में बिताया इसके लिए आपको धन्यवाद ! आज आपने  उपग्रहों के प्रक्षेपण का सिद्धांत क्या  है  के बारे में जाना | हमें उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा अगर पसंद आया है तो इसे आप अपने सोशल मिडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जरुर शेयर करे👇

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